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सांविधानिक विधि
राष्ट्रीय ध्वज फहराना मौलिक अधिकार है
« »06-Aug-2025
विनु सी. कुंजप्पन बनाम केरल राज्य “सूर्यास्त के पश्चात् राष्ट्रीय ध्वज को नीचे न उतारना, जानबूझकर अपमान या अनादर करने के आशय के बिना, राष्ट्र-गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के प्रावधानों को आकर्षित नहीं करता है।” डॉ. न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति डॉ. कौसर एडप्पागथ ने निर्णय दिया कि सूर्यास्त के पश्चात् राष्ट्रीय ध्वज को नीचे करने में अनजाने में हुई विफलता, कोई जानबूझकर साशय किया गया कृत्य अथवा दुराशय (mens rea) नहीं है, ऐसी स्थिति में राष्ट्र-गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के अंतर्गत कोई दण्डनीय अपराध स्थापित नहीं होता।
- केरल उच्च न्यायालय ने विनु सी. कुंजप्पन बनाम केरल राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया ।
विनु सी. कुंजप्पन बनाम केरल राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- याचिकाकर्त्ता 2015 में अंगमाली नगर पालिका के सचिव के रूप में कार्यरत थे। उस वर्ष स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान, नगरपालिका कार्यालय में राष्ट्रीय ध्वज फहराने का दायित्त्व उनका था।
- स्वतंत्रता दिवस 2015 पर, आधिकारिक समारोह के एक भाग के रूप में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया । यद्यपि, ध्वज फहराए जाने के लगभग दो दिन बाद तक, दो दिन बाद दोपहर तक, फहराता रहा, और प्रोटोकॉल के अनुसार सूर्यास्त के पश्चात् उसे नीचे नहीं उतारा गया।
- अंगमाली पुलिस स्टेशन ने याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध स्वतः संज्ञान लेते हुए FIR (प्रथम सूचना रिपोर्ट) दर्ज की, अर्थात् पुलिस ने बिना कोई परिवाद दर्ज किये ही स्वतः ही मामला दर्ज कर लिया। यह मामला राष्ट्र-गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 की धारा 2(क) और भारतीय ध्वज संहिता, 2002 के भाग-3, धारा 3, नियम 3.6 के अधीन दर्ज किया गया था।
- याचिकाकर्त्ता पर सूर्यास्त के पश्चात् राष्ट्रीय ध्वज को नीचे न उतारकर अपराध करने का अभिकथन किया गया था, जिसे राष्ट्र- गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 और भारतीय ध्वज संहिता, 2002 का उल्लंघन बताया गया था।
- पुलिस द्वारा मामले में अपनी अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के बाद, मजिस्ट्रेट न्यायालय ने मामले का संज्ञान लिया, अर्थात् न्यायालय ने आधिकारिक तौर पर मामले को मान्यता दी और आगे बढ़ने का निर्णय किया। आपराधिक कार्यवाही का सामना करते हुए, याचिकाकर्त्ता ने अपने विरुद्ध मामला रद्द करने की मांग करते हुए केरल उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि सूर्यास्त के पश्चात् राष्ट्रीय ध्वज को नीचे न उतारना राष्ट्रीय ध्वज के प्रति घोर अनादर या अपमान करने वाला कृत्य नहीं माना जा सकता।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि जब तक राष्ट्रीय गौरव का अपमान करने या राष्ट्रीय ध्वज के प्रति अनादर दिखाने के स्पष्ट आशय से जानबूझकर कार्रवाई नहीं की जाती है, तब तक राष्ट्र- गौरव अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के प्रावधान लागू नहीं किये जा सकते।
- न्यायालय ने कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे पता चले कि याचिकाकर्त्ता का राष्ट्रीय ध्वज का अनादर करने या राष्ट्र की संप्रभुता को कमज़ोर करने का कोई आपराधिक आशय (mens rea) था। न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ता द्वारा ध्वज को नीचे न झुकाना उपेक्षा या भूल के कारण था, जानबूझकर अनादर के कारण नहीं।
- न्यायालय ने माना कि राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान और गरिमा के साथ फहराने का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के अधीन प्रत्याभूत एक मौलिक अधिकार है, किंतु यह अधिकार अनुच्छेद 19(2) के अधीन युक्तियुक्त निर्बंधनों के अधीन है।
- न्यायालय ने 1971 के अधिनियम की धारा 2 और उसके स्पष्टीकरण 4 की जांच की और पाया कि सूर्यास्त के पश्चात् ध्वज को नीचे न करने के विशिष्ट कृत्य को इस प्रावधान के अंतर्गत स्पष्ट रूप से अपराध नहीं माना गया है। चूँकि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं था कि याचिकाकर्त्ता ने स्पष्टीकरण 4 में परिभाषित "राष्ट्रीय ध्वज का घोर अपमान या अनादर" किया था, इसलिये न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अधिनियम के अंतर्गत कोई अपराध सिद्ध नहीं होता।
- न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की कि 2002 की ध्वज संहिता में केंद्र सरकार के कार्यकारी निदेश सम्मिलित हैं और इसलिये यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13(3)(क) के अर्थ में "विधि" नहीं है। न्यायालय ने कहा कि ध्वज संहिता सभी भारतीय नागरिकों के लिये एक अनिवार्य आचार संहिता है, किंतु दण्डात्मक परिणाम तब तक नहीं अधिरोपित किये जा सकते जब तक कि ऐसे दण्ड को अधिकृत करने वाला कोई विशिष्ट सांविधिक प्रावधान न हो।
संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के अधीन राष्ट्रीय ध्वज फहराना मौलिक अधिकार क्यों माना जाता है?
- सांविधानिक अधिकार: राष्ट्रीय ध्वज को सम्मानपूर्वक फहराना, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के भाग के रूप में अनुच्छेद 19(1)(क) के अधीन एक मौलिक अधिकार है।
- प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति: यह देशभक्ति, गर्व और राष्ट्रीय निष्ठा को दर्शाने वाला गैर-मौखिक, प्रतीकात्मक भाषण का एक रूप है।
- योग्य अधिकार: यह अधिकार पूर्ण नहीं है और लोक व्यवस्था, नैतिकता और राष्ट्रीय गरिमा के लिये अनुच्छेद 19(2) के अधीन युक्तियुत निर्बंधनों के अधीन है।
- उपयोग की सीमाएँ: ध्वज का अपमानजनक या व्यावसायिक उपयोग संरक्षित नहीं है।
- ध्वज संहिता की स्थिति: ध्वज संहिता कोई विधि नहीं है, अपितु केवल कार्यकारी निदेश है और यह मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित नहीं कर सकती।
- सांविधिक विनियमन: ध्वज के दुरुपयोग और अपमान को रोकने के लिये 1950 और 1971 के अधिनियमों द्वारा ध्वज के उपयोग को विनियमित किया गया है।
- कर्त्तव्य और संरक्षण: नागरिकों का मौलिक कर्त्तव्य (अनुच्छेद 51-क) है कि वे ध्वज का सम्मान करें, और न्यायालय इसकी गरिमा को बनाए रखते हुए इस अधिकार की रक्षा करते हैं।
भारत संघ बनाम नवीन जिंदल (2004)
- उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि राष्ट्रीय ध्वज को सम्मानपूर्वक फहराना अनुच्छेद 19(1)(क) के अधीन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक मौलिक अधिकार है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भारतीय ध्वज संहिता कोई विधि नहीं है, अपितु केवल कार्यकारी निदेश है, और यह सांविधानिक अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर सकता । यद्यपि, यह अधिकार अनुच्छेद 19(2) के अधीन युक्तियुक्त निर्बंधनों के अधीन है । न्यायालय ने उच्च न्यायालय के उस निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें ध्वज के सम्मानपूर्वक प्रदर्शन की अनुमति दी गई थी, जबकि अलग-अलग विधियों के अधीन इसके दुरुपयोग पर रोक लगाई गई थी ।